राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बन्ना बनकर जशोदा के लाल निकले
राधा रानी को वरने आज गोपाल निकले
क्या सुन्दर है सिर पे मुकुट साजता
कुण्डल कानों में देखो हैं मन भावता
चम-चम चमके मुकुट पे हीरालाल निकले
राधा रानी को वरने आज गोपाल निकले
बन्ना बनकर जशोदा के लाल निकले
माला गले मंे बैजन्ती देखो है पड़ी
कर में कंगन सुबरन का है जवाहर जड़ी
कांधे पटुका पीला वो डाल निकले
राधा रानी को वरने आज गोपाल निकले
बन्ना बनकर जशोदा के लाल निकले
संग बराती है ग्वाला देखे सजने लगे
द्वारे बाजे मन मोहक हैं बजने लगे
नन्दराय सब सामां संभाल निकले
राधा रानी को वरने आज गोपाल निकले
बन्ना बनकर जशोदा के लाल निकले
फूल आकाश से देव बरसाने लगे
देख बन्ना को सब ही मुस्काने लगे
नाचे चंचल छमा-छम संुदर लाल निकले
राधा रानी को वरने आज गोपाल निकले
बन्ना बनकर जशोदा के लाल निकले।