राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
घोड़ी मारी घणी य सरूप, दौलतगढ़ से ऊतरी जी,
दादा सा मांने घोड़ी ले द्यो मोल, जावांला समन्दर सासर जी,
जास्या-जास्या साजनियां री पोल लाडी तो ल्यास्या रूप की जी,
बनो म्हारो घणो य सरूप, अंधेरा घर में दिवाली जी,
बनी मारी घणी य सरूप आभा तो घर की बीजली जी।