वह
भागती हुई
आती है
दूर जंगल के पार से
और
झूल जाती है
बाँहों में निढाल
हाँफती हुई
सिर टिका क्न्धे पर
गो मैं पहाड़ हूँ
और वह बनैली हवा ।
वह
भागती हुई
आती है
दूर जंगल के पार से
और
झूल जाती है
बाँहों में निढाल
हाँफती हुई
सिर टिका क्न्धे पर
गो मैं पहाड़ हूँ
और वह बनैली हवा ।