बन जाऊं चरणकी दासी रे। दासी मैं भई उदासी॥ध्रु०॥
और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥
बन जाऊं चरणकी दासी रे। दासी मैं भई उदासी॥ध्रु०॥
और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥