बरखा आई रे / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

खेलें कूदें धूम मचाएँ,
बरखा आई रे।
अखवारों की नाव चलाएँ,
बरखा आई रे।

अम्मा कहती बच्चो कपडे,
गीले मत करना।
बस कच्छे में चलो नहाएँ,
बरखा आई रे।

आसमान कीओर उठाकर,
अपना मुंह रखना।
बूँदें मुखड़े से टकराएँ,
बरखा आई रे।

आंगन में भर जाए पानी,
घुटनों-घुटनों तक,
ईश्वर यह दुआ मनाएँ,
बरखा आई रे।

पानी में खेलेंगे छप-छप,
थोड़ा लौटेंगे लोटेंगे।
घोर-घोर रानी जाएंगे,
बरखा आई रे।

बारिश के मौसम में पापा,
खाते हैं भजिये।
अम्मा शायद गर्म बनायें,
बारिश आई रे।

चाट बाजारों की मत खाना,
दादी कहती है।
खाना ख़ूब चबाकर खाएँ,
बरखा आई रे।

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