बरगद अपने आँगन में था
कल वह ठूँठ हुआ
उसकी जड़ को
पता नही कब दीमक चाट गई
अमरबेल लडकों ने रोपी
घर में नई-नई
पुरखों ने पाला-पोसा था
अंधा हुआ सुआ
सगुन-चिरइया का जोड़ा
बरगद पर रहता था
तब यह बरगद
रामराज की गाथा कहता था
इसके साये देते थे
सपनों की हमें दुआ
परिक्रमा करते थे इसकी
सूरज-चाँद सभी
हमें न व्यापी इसके रहते
विपदा कोई कभी
'वटसावित्री' पर किसको
पूजेंगी बड़ी बुआ