Last modified on 30 जुलाई 2011, at 15:58

बरवै रामायण/ तुलसीदास / पृष्ठ 3

( बरवै रामायण बालकाण्ड/पृष्ठ-2)

( पद 6 से 10तक)

काम रूप सम तुलसी राम स्वरूप।
को कबि समसरि करै परै भवकूप।6।

साधु सुसील सुमति सुचि सरल सुभाव।
राम नीति रत काम कहा यह पाव।7।

 सींक-धनुष हित सिखन सकुचि प्रभु लीन।
मुदित माँगि इक धनुही नृप हँसि दीन।8।

केस मुकुत सखि मरकत मनिमय होत।
हाथ लेत पुनि मुकुता करत उदोत।9।
 
सम सुबरन सुषमाकर सुखद न थोर।
सिय अंग सखि कोमल कनक कठोर।10।

(इति बरवै रामायण बालकाण्ड पृष्ठ 2)



अगला भाग >>