Last modified on 27 मई 2010, at 13:28

बरसते मेह का / हेमन्त श्रीमाल

चुम्बन ले जो रोज़ गुलाबी देह का
हमसे अच्छा भाग बरसते मेह का

पहले तो गौरी के तन को ये जमकर नहलाए
नहलाने की ओट लिए फिर अन्तर तक सहलाए
करता है इज़हार लिपटकर स्नेह का
हमसे अच्छा भाग बरसते मेह का

अलकों से पलकों पर ढुलके फिर होंठों को लूटे
ठोड़ी तक आते-आते तो इसका धीरज छूटे
दौड़ करे मधुपान उमर के गेह का
हमसे अच्छा भाग बरसते मेह का

इक छी।टा हमने मारा तो अब तक है नाराज़ी
सौ-सौ बार भिगोया जिसने उसकी "हाँ जी-हाँ जी"
दान उसे विश्वास हमें सन्देह का
हमसे अच्छा भाग बरसते मेह का