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बरसते ये नहीं बादल / रामकुमार कृषक

ये नहीं बादल
हमारे घर बरसते हैं,
बरसते ये नहीं बादल !

भीगता कुठला
बरोसी भीगती है
भीग चौखट से लगा
कोई खड़ा है
एक कोने में है चक्की चुप्प कब से
और चूल्हा
बेतरह ठण्डा पड़ा है,

आग बिन उपले
दहकने को तरसते हैं !

टपटपाते नीम
चुचियाती अलौती
बांस - बल्ली पर गिलहरी
डोलती - सी
पेट में मूण्डी दिए गुमसुम झबरिया
गाय - बैलों की उदासी
बोलती - सी,

कौन - से सावन
उतर आँगन सरसते हैं !

ये नहीं बादल
हमारे घर बरसते हैं ,
बरसते ये नहीं बादल ...