हर महीने की बरसात का खेती बाड़ी पर अलग-अलग असर पड़ता है। बरसात की मात्रा और ख्ाती पर पड़ने वाले प्रभाव के अनुसार इसके नाम बदलते रहते हैं। देसी महीनों के हिसाब से होने वाली बरसात और उसके प्रभाव की जानकारी इस कविता से मिलती है।
गरड़ फरड़ अर झरमरिया, कदे कुहावै डोळे तोड़
चादर भे मं मरै तिसाये घणी बणा दे गाम न जोहड़
लगती होज्या तो परलो करदे थोड़ी मं कुंहावै काळ
न्यारे न्यारे नाम गिनाऊं सारे सुणियो करकै ख्याल
चैत मं चड़पड़ाट होता, बैसाख मं हल़सौतिया
जेठ म झपट्टा मारै साढ़ म सरूवातिया
सामण के मं ल्होर चालैं भादों के मं लाग्गै झड़ी
आसोज के मं मोती पड़ै कातक कहैं कटक पड़ी
मंगसर मं फॉसरड़ा हो पौह मं पौहवट फायदा भार्या
मांह मं महावट आच्छी हो फागण का चोखा फटकारा
इस बिना चहल काम ना चालै जमीदारै मं आवै काम
टोटा नफै दोनूं देवै, बारहूं महीने बदलैं नाम