बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं इहि छाक छईं।
निरखैं परखैं करखैं हरखैं उपजी अभिलाषनि लाख जईं।
घनआनँद ही उनए इनि मैं बहु भाँतिनि ये उन रंग रईं।
रसमूरति स्यामहिं देखत ही सजनी अँखियाँ रसरासि भईं॥
बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं इहि छाक छईं।
निरखैं परखैं करखैं हरखैं उपजी अभिलाषनि लाख जईं।
घनआनँद ही उनए इनि मैं बहु भाँतिनि ये उन रंग रईं।
रसमूरति स्यामहिं देखत ही सजनी अँखियाँ रसरासि भईं॥