धाय खड़ा है
खेजड़े का रूंख
कब से
तप से
तपती रेत में
फिर भी
ऊंघता तक नहीं
शून्य में ताकता
तेरी चाह को हांकता
कभी हटो तो सही
हठ से।
जुड़ जाए
कोई नया इतिहास
इतना बरसो रेत में
रेत के हेत में
आ खेजडे़ के साध्य जल।
धाय खड़ा है
खेजड़े का रूंख
कब से
तप से
तपती रेत में
फिर भी
ऊंघता तक नहीं
शून्य में ताकता
तेरी चाह को हांकता
कभी हटो तो सही
हठ से।
जुड़ जाए
कोई नया इतिहास
इतना बरसो रेत में
रेत के हेत में
आ खेजडे़ के साध्य जल।