Last modified on 2 अगस्त 2010, at 12:04

बराबरी / अजित कुमार

रेंग ले,
और तनिक रेंग ले,
ओ कीड़े !

खरगोशों की बराबरी
क्या ख़ाक तू करेगा !
चौकड़ी भरते
और
कुलाँचे लगाते
अब वे ओझल हो चुके हैं-
तेरी पहुँच से परे,
अपनी मंज़िल के आगे ।