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बर्फ़ीला तूफ़ान / तसलीमा नसरीन

जाने किसने अचानक मुझे फेंक दिया यहाँ
बर्फ़ीले तूफ़ान में...
जितनी दूर निगाहें जाती हैं और जहाँ नहीं जा पातीं
आँखों को चौंधियाती सफ़ेदी है, सिर्फ़ सफ़ेदी, साँय-साँय सिर्फ़ ....
बाँहें उठाए नाच रही है बर्फ़ की बेटी
सूखे पत्तों की मानिन्द उड़ा रही है मुझे
चक्रवात में फँसाकर उतारवा रही है बदन ढँकने के सारे कपड़े।
मेरे बाल मेरी आँखें
मेरा सब कुछ,
मेरा सारा बदन बर्फ़ से ढँक गया है।
बिलकुल पास में उतर आया है आसमान
छूने गई तो ज़िन्दा एक टहनी टूट कर गिर पड़ी,
आसमान अब आसमान-जैसा नहीं है,
तूफ़ान में वह भी औंधे मुँह आ गिरा है।
दो-एक पेड़ कहीं पर थे शायद
वे भी टूट-टूट कर बर्फ़ के ढेर में बिलाने लगे हैं।
प्रकृति का कफ़न
मुझे अपने में लपेट कर कहीं घुसा जा रहा है, किसी गर्त में।
मेरे होंठ काँप रहे हैं, कान लाल हो उठे हैं,
नाक और गालों पर जम गया है ख़ून,
सफ़ेद हो गई हैं हाथ की उँगलियाँ, बर्फ़ की तरह सफ़ेद,
उँगलियाँ उँगलियों-जैसी नहीं लग रही हैं
लगता है कई लाख सुइयाँ बिंधी हुई हैं उँगलियों में।
मुझे अब कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा,
दिखाई नहीं दे रहा कुछ भी,
सब कुछ सफ़ेद है अब
मृत्यु की तरह, ख़ामोशी की तरह, चन्द्रमल्लिका की तरह

धीरे-धीरे रक्तहीन हो रही है त्वचा,
धीरे-धीरे तेज़ और धारदार ठण्डे दाँत
मुझे खाते-खाते-खाते-खाते
मेरे पैरों से हाथ और हाथ से जाँघ की ओर
बाँह और हृदय की ओर बढ़ रहे हैं।

मैं जमी हुई हूँ
मैं जमी जा रही हूँ
समूची मैं
बर्फ़ का एक पिण्ड बनती जा रही हूँ ...
ओ देश, ओ कोलकाता, मुझे ज़रा-सी आग दोगे?

मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी