जिस दिन होना थी लड्डू की बर्फीजी से शादी,
बर्फी बहुत कुरूप किसी ने झूठी बात उड़ा दी|
गुस्से के मारे लड्डूजी जोरों से चिल्लाये|
बिना किसी से पूँछतांछ वापस बारात ले आये|
लड्डू के दादा रसगुल्ला बर्फी के घर आये|
बर्फीजी को देख सामने मन ही मन मुस्काये|
बर्फी तो इतनी सुंदर थी जैसे कोई परी हो|
पंख लगाकर आसमान से अभी अभी उतरी हो|
रसगुल्लाजी फिदा हो गये उस सुंदर बर्फी पर|
ब्याह कराकर उसको लाये वे चटपट अपने घर|
लड्डू क्वांरा बेचारा अब लड़ता रसगुल्ला से|
रसगुल्ला मुस्कराता रहता बिना किसी हल्ला के|
सुनी सुनाई बातों पर तुम कभी ध्यान मत देना|
क्या सच है क्या झूठ सुनिश्चित खुद जाकर कर लेना|