Last modified on 19 जनवरी 2016, at 13:45

बल्देव जी का मेला / नज़ीर अकबराबादी

क्या वह दिलबर<ref>दिल उड़ा ले जाने वाला, प्रेमपात्र, माशूक</ref> कोई नवेला है?
नाथ है, और कहीं वह चेला है।
मोतिया हैं, चंबेली बेला है।
भीड़ अम्बोह<ref>समूह, भीड़, जमाव</ref> है, अकेला है।
शहरी, क़स्बाती<ref>कस्बे का</ref> और गंवेला<ref>गांव का रहने वाला</ref> है।
ज़र<ref>धन, दौलत</ref> अशर्फी है, पैसा, धेला है।
एक क्या-क्या वह खेल खेला है।
भीड़ है ख़ल्क़तों<ref>दुनिया, भीड़</ref> का रेला है।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥1॥

है कहीं यार और कहीं अग़यार<ref>‘गैर’ का बहुवचन, गै़र लोग</ref>।
कहीं आशिक़ है, और कहीं दिलदार।
कहीं बस्ती है और कहीं गुलज़ार<ref>बाग़</ref>।
कहीं जंगल है, और कहीं बाज़ार।
वही भगती है, और वही औतार।
उसकी लीलाएं किससे हों इज़हार<ref>प्रकट, जाहिर</ref>।
आप आता है देखने को बहार।
आप कहता है यूं पुकार पुकार।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥2॥

है कहीं राम, और कहीं लक्ष्मन।
कहीं कछमछ<ref>कच्छपावतार, मत्स्यावतार</ref> है और कहीं रावन।
कहीं बाराह, कहीं मदनमोहन।
कहीं बल्देव और कहीं श्रीकिशन<ref>श्रीकृष्ण</ref>।
सब सरूपों में हैं उसी के जतन।
कहीं नरसिंह<ref>नृसिंहावतार</ref> है सह नारायन।
कहीं निकला है सैर को बनबन।
कहीं कहता फिरे हैं यूं बन-बन।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥3॥

आज मेले का यां जो है सामान।
आये हैं दूर-दूर से इंसान।
कोई दर्शन, कोई दुआएं मान।
सबकी होती हैं मुश्किलें आसान।
हर तरफ खिल रहे गुलो रेहान।
हार, बद्धी<ref>कंधे पर से जनेऊ की तरह पड़ी हुई फूल माला</ref> मिठाई और पकवान।
भीड़-अम्बोह<ref>भीड़भाड़</ref>, गु़ल<ref>कोलाहल, शोर</ref> दुकान-दुकान।
और यही शोर, हर घड़ी, हर आन।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥4॥

हर तरफ़ हुस्न की पुकारें हैं।
दिल रुवा सौ बरन संवारे हैं।
इक तरफ़ नौबतें झनकारें हैं।
झांझ, मरदंग रासधारें हैं।
कहीं आशिक़ नज़ारे मारे हैं।
सौ निगाहों की जीत हारें हैं।
सैर है, दीद है, बहारें हैं।
करके ‘जै’ जै यही पुकारे हैं।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥5॥

इतने लोगों के ठठ लगे हैं आ।
जो कि तिल धरने की नहीं है जा<ref>जगह</ref>।
लेके मंदिर से दो-दो कोस लगा।
बाग़ों बन भर रहे हैं सब हर जा।
है हजारों बिसाती और सौदा।
लाखों बिकते हैं गहने और माला।
भीड़, अम्बोह और धरम धक्का।
जिस तरफ़ देखिए अहा! हा! हा!
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥6॥

बसकि उमड़े हैं ख़ल्क़तों के दल
जा बजा भर रहे हैं जड़ जंगल।
चौक़ बाजार, फौज, और दंगल।
जंगलों में है मच रहे मंगल।
कोई अम्बोह में रहा है कुचल।
कोई धक्कों में कररहा दल मल।
कितने करते हैं जस्त कूद उछल।
कितने कहते हैं मोरछल झल-झल।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥7॥

हैं हज़ारों ही जिन्स के हट्टे<ref>हाट बाजार</ref>।
मोती, मूंगा और आरसी बट्टे।
पेड़ें, लड्डू, जलेबी और गट्टे।
कोले, नारंगी, संगतरे, खट्टे।
कोई तो कर रहा है छल बट्टे।
कोई चढ़ाता है खीर के चट्टे।
पुर<ref>भरे हुए</ref> है मन्दिर के कोठे और अट्टे।
बूढ़े, लड़के, जवान और कट्टे।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥8॥

लोग चारों तरफ के आते हैं।
आके ऐशो-तरब<ref>आनन्द</ref> मनाते हैं।
दिल से सब दर्शनों को जाते हैं।
अपने दिल की मुराद पाते हैं।
झांझ, मरदंग, दफ़ बजाते हैं।
रास मंडल भजन सुनाते हैं।
दिल में फूले नहीं समाते हैं।
सब यह हंस-हंस के कहते जाते हैं।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥9॥

हर तरफ़ गुल बदन रंगीले हैं।
नुक पलक, गुंचा लब, सजीले हैं।
बात के तिरछे और कटीले हैं।
दिल के लेने को सब हठीले हैं।
खु़श्क तर, नर्म, सूखे, गीले हैं।
टेढ़े, बलदार और नुकीले हैं।
जोड़े भी सुर्ख, सब्ज, पीले हैं।
प्यार, उल्फ़त, बहाने, हीले हैं।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥10॥

ख़ल्क<ref>दुनियां</ref> आती है सब जुड़ी जबड़ी।
चीज़ रखते हैं बांध कर जकड़ी।
कोई दौड़े है हाथ ले लकड़ी।
‘दौड़ियो चोर ले चला गठड़ी’।
जेब कतरी, कहीं गई पकड़ी।
कहीं लूटी दुकान और हटड़ी<ref>छोटी दुकान, पंजाबी भाषा में</ref>।
चोर ने ताक ली कहीं पगड़ी।
सौ तमाशे, हंसी, खुशी, फ़कड़ी<ref>फक्कड़पन</ref>।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥11॥

नाज़नीं हैं वह सांवरी, गोरी।
जिनकी नाजुक हर एक परी पोरी।
करके चितवन निगाह की डोरी।
दिल को छीने हैं सब बरा ज़ोरी।
धूम, नाज़ो-अदा झकाझोरी।
ब्रज में जैसी मच रही होरी।
घूंघटों में हैं कर रही चोरी।
चोरी कैसी कि साफ़ सिर ज़ोरी।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥12॥

कुंड पर ही नहान होते हैं।
जिसमें गंगा वरन के सोते हैं।
पानी ले हाथ मुंह को धोते हैं।
कितने कंठी खड़े पिरोते हैं।
कितने जाकर बनों में सोते हैं।
बन्दरों में चनों को बोते हैं।
इन बहारों में होश खोते हैं।
सौ मजे, सौ तमाशे होते हैं।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥13॥

कोई आकर बहाने और मिससे।
मिल रहा है, मिला है दिल जिससे।
होते हैं आ मिलाप जिस तिस से।
लड़ रहा है कोई कहीं रिस<ref>क्रोध, गुस्सा</ref> से।
कोई खोया गया है मज्लिस से।
कौन चिल्लाए पूछिए किस से।
कोहनी, ब़ाजू में लग रहे घिस्से।
और धक्का पेल, और धमांधिस्से।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥14॥

नाच और राग के खड़ाके हैं।
घुंघरू और ताल के झनाके हैं।
नक़लें, किस्से, कहानी, साके हैं।
खंड दोहरे, कवित, कथा के हैं।
कहीं आगोश<ref>ग़ोद, बगल मिलना</ref> के लपाके हैं।
कहीं बोसों केसौ झपाके हैं।
थरथरी, दांत पर कड़ाके हैं।
तिस पै जाड़े के सौ झड़ाके हैं।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥15॥

सहन मन्दिर का सबसे है आला।
उसका गुम्बद है आलमे बाला<ref>आकाश, देवलोक तक</ref>।
हो रहा झांकियों का उजियाला।
पर्दे जैसे हैं चांद पर हाला<ref>चांद के चारों ओर पड़ने वाला घेरा, मंडल, परिवेश</ref>।
है कोई दर्शनों का मतवाला।
कोई जपता है ध्यान में माला।
कोई दण्डवतें कर रहा लाला।
कोई जै जै करे है धन वाला।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥16॥

हैं जो मन्दिर में आप वह लालन।
हर घड़ी में बदल रहे अभरन।
नई पोशाक, और नये भोजन।
नई झांकी है, और नये दर्शन।
आरती की कहीं मची ठन-ठन।
कहीं घंटों की हो रही छन-छन।
ताल, मरदंग, झांझ की झन-झन।
ख़ास परशाद मिश्री और माखन।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥17॥

कोई चंचल चले है ठुमकी चाल।
कुछ वह पतली कमर, वह लम्बे बाल।
आंखों में हुस्न के नशे, रंग लाल।
मिश्री, माखन के हाथों ऊपर थाल।
कुछ वह पोशाक, कुछ वह हुस्नो जमाल।
मालिनों का ज़्यादा उनसे कमाल।
डाल दें हार का गले में जाल।
बद्धी होकर, लें साफ़ दिल को निकाल।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥18॥

बस कि आते हैं राजा औ रानी।
और लाखों हैं रानी और नानी।
भीड़, अम्बोह की फरावानी।
और हुजूमों<ref>भीड़</ref> की लाख तुग़्यानी<ref>बाढ़</ref>।
पालकी, हाथी, घोड़े, रथ बानी।
जोगी, बैरागी, ज्ञानी और ध्यानी।
कुछ नहीं मौल-तोल क्या मानी।
पानी का दूध, दूध का पानी।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥19॥

कितने कच्चे हैं, कितने पक्के हैं।
ओंगे मुंह<ref>ऊंगते हुए से, सुस्त मुंह वाले</ref>, और उछाल छक्के हैं।
चोर, नट-खट हैं, और उचक्के हैं।
दूध, खोया, मलाई, चक्के हैं।
भीड़, अम्बोह और भड़क्के हैं।
धूम धोंसों की और धड़क्के हैं।
पालकी, हाथी, घोड़े, ढक्के हैं।
सौ तमाशे हैं सौ झमक्के हैं।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥20॥

लाखों बैठे बिसाती और मनिहार।
अपना सब गर्म कर रहे बाज़ार।
चूड़ी, बगडी की इक तरफ़ झंकार।
नौगरी<ref>हाथ में पहनने का एक गहना जिसमें नौ कंगूरेदारदाने पाट में गुंथे रहते हैं।</ref> पोथ<ref>कांच के सूराखदार छोटे-छोटे दाने जो मोतियों की तरह होते हैं</ref>, अंगूठी, छल्ले हार।
टूटे पड़ते गंवारी और गंवार।
जिस गंवारी को चलिये धक्का मार।
गिर के दे गाली, यूं कहे है पुकार।
”कैसो इठला चले हैं दाढ़ी जार<ref>कुपित होने पर ग्रामीण स्त्रियों द्वारा पुरुषों को दी जाने वाली गाली</ref>।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥21॥

मिट्टी ओर काठ के खिलौने ढ़ेर।
कोई लेवे है कोई देवे फेर।
कोई कुम्हारी के कर रहा हथफेर।
कोई काछिन के चुन रहा है बेर।
कोई कुंजड़िन से लड़ रहा मुंह फेर।
कोई बनिये को मारता है सेर।
गाली, डुक मारकूट, सांझ सबेर।
लाठी-पाठी है, शोर-गुल, अंधेर।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥22॥

सैकड़ों रंग-रंग की छड़ियां।
फूल गेंदों के हार की लड़ियां।
कहीं छूटें अनार, फुलझड़ियां।
कहीं खिलती हैं, दिल की गुलझड़ियां।
कहीं उल्फ़त से अंखड़ियां लड़ियां।
कहीं बाहें गले में है पड़ियां।
ऐश इश्रत की लुट रही धड़ियां।
दाल मोठें मंगोड़ी और बड़ियां।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥23॥

लग रही भीड़ इस क़दर ठठ हो।
राह आगे को और न पीछे को।
जो जहां था, वहीं फंसा फिर वो।
जिसको खींचे हैं, गिर पड़े हैं सो।
बैठे कहते हैं खाके धक्कों को।
”जै महाराज राम-राम भजो“।
और गंवार दल पुकार कर ”हो-हो“!
अब तो लठवारो है लगाने को।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥24॥

क्या कची है बहार ”जै बल्देव“।
ऐश के कारोबार ”जै बल्देव“।
धूम लैलो निहार<ref>रात दिन</ref> ”जै बल्देव“।
हर कहीं आश्कार<ref>व्यक्त, ज़ाहिर</ref> ”जै बल्देव“।
हर जुबां पर हज़ार ”जै बल्देव“।
दम बदम यादगार ”जै बल्देव“।
कह “नज़ीर” अब पुकार ”जै बल्देव“।
सब कहो एक बार ”जै बल्देव“।
रंग है रूप है, झमेला है।
ज़ोर बल्देव जी का मेला है॥25॥

शब्दार्थ
<references/>