तू अदृश्य से बल देती है माँ
बेचैनी में कल देती है माँ
तू सागर की गोद बिठाती
हर्षित पुण्य विनोद बिठाती
दुनिया सिर्फ अनल देती है माँ
तू अदृश्य से बल देती है माँ
बेचैनी में कल देती है माँ
मैंने चाहा विश्व सकल को
सब के फल को और सुफल को
मुझको चाह सरल देती है माँ
तू अदृश्य से बल देती है माँ
बेचैनी में कल देती है माँ
मेरे गीतों का तू रस है
ताल छंद तू ही सर्वस है
मीठे भाव अटल देती है माँ
तू अदृश्य से बल देती है माँ
बेचैनी में कल देती है माँ
सुख से जीवन जिया आज तक
जग के आँसू पिया आज तक
युग जैसा हर पल देती है माँ
तू अदृश्य से बल देती है माँ
बेचैनी में कल देती है माँ