Last modified on 28 मार्च 2011, at 18:46

बसंत / महेन्द्र भटनागर

अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,

बसंत आ गया !

दूर खेत मुसकरा रहे हरे-हरे,
डोलती बयार नव-सुगंध को धरे,
गा रहे विहग नवीन भावना भरे,
प्राण ! आज तो विशुद्ध भाव प्यार का

हृदय समा गया !

खिल गया अनेक फूल-पात से चमन ;
झूम-झूम मौन गीत गा रहा गगन,
यह लजा रही उषा कि पर्व है मिलन,
आ गया समय बहार का, विहार का

नया नया नया !