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बसंत आगमन / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

देखो पादप हुए नए फिर,
मन में पतझड़ की आस लिए ।
नई कोपलियों संग देखो,
नव उमंग, तरंग, विश्वास लिए ।।

कोयल की मधुर कूक से,
स्वागत का है संगीत बजा ।
प्रकृति की सुनहरी थाली में,
बहुरंगी पुष्पों का प्यार सजा ।।

जीर्ण-शीर्ण पातों को त्यागे,
पादप फिर से रंगीन हुए ।
भारत माता के अभिनंदन को,
परिधान रेशमी लिए हुए ।

आओ मिलकर हम भी बदलें,
अपने रूढ़ बैर, विचारों को ।
कुछ शिक्षा लें इस प्रकृति से,
अपनाकर श्रद्धा और विश्वासों को ।