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बसती बसत लोग बहुतेरे / ईसुरी

बसती बसत लोग बहुतेरे।
कौन काम के मोरें।
बैठे रहत हजारन को दी,
कबऊँ न जे दृग हेरे।
गैल चलत गैलारे चर्चे,
सब दिन साझ सबेरे।
हाय दई उन दो ऑखन बिन,
सब जग लगत अँधेरे।
ईसुर फिर तक लेते उन खाँ
वे दिन विध ना फेरे।