घोंघे पर छा गया बसंत ।
अपने घर को उसने
कँलगी की तरह
माथे पर रखा,
अपने पैरों स
घोड़े की दुलकी वह चला...
फिर क्यों न लोग कहते-
वाह ! वाह !
वाह ! श्री घोंघाबसंत !
घोंघे पर छा गया बसंत ।
अपने घर को उसने
कँलगी की तरह
माथे पर रखा,
अपने पैरों स
घोड़े की दुलकी वह चला...
फिर क्यों न लोग कहते-
वाह ! वाह !
वाह ! श्री घोंघाबसंत !