प्रतीक्षा की वर्षों कि सुलगेंगे लोग सीखकर गुलमुहर से - रक्ताभ हो जाओ जब असह्य लगे गर्मी कहीं कुछ नहीं हुआ धुआंते धुआंते अब खिल गई है आग पता नहीं चलता कहां रोपें पैर (+झारखंड का एक गांव जहां धरती से आग निकलती है)