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बहने लगे सौहार्द / जगदीश पंकज

मैं सजग हूँ
अब स्वयं से भी
सतत, भटकाव क्षण में
 
किस विलम्बित
ताल पर गाना सरल
सोचने में गल रहा
हर एक पल
 
अब धुंएँ से
छिप न जाए सत्य
नभ का, इस क्षरण में
 
समय के संज्ञान में
लाना कठिन
खुरदरा क्यों मिल रहा
है रोज़ दिन
 
अब यहाँ
बहने लगे सौहार्द
अपने रक्त-कण में