Last modified on 17 अप्रैल 2011, at 01:58

बहरापन-4 / ऋषभ देव शर्मा

बहुत दिन
सहा मैंने,
सुनती रही चुपचाप,
झेलती रही
मारकाट सारी,
पर तुम तो उतारू हो गए
मेरी पहचान मेटने पर;
चिल्लाओ मत,
बहरी नहीं हूँ मैं;
और आज से
           गूँगी भी नहीं !