Last modified on 22 अगस्त 2009, at 15:08

बहस के बीच / केशव

जब कहने के लिए कुछ नहीं बचा
उनके पास
तो वे सूखे स्वर में एक साथ बोले
'हम गिरा सकते हैं तुम्हें
क्योंकि तुम एक ऐसे घने वृक्ष हो
कुछ नहीं उग सकता
जिसके नीचे
सिवा सूखी घास के'
तब लगा मुझे
ये सब अब भाग रहे हैं
बौखलाये चूहों की तरह
टूटे काँच पर

बंदर,बिल्लियों के झगड़े में
भला क्या बोल सकता हूँ मैं
जबकि ये सब
उतर आये हैं
बुद्धि के बलात्कार पर
पर मेरे अंदर
एक चाकू
बहुत तेज़ी से चलने लगा
खून को चीरता हुआ
अब-जब मैने
बता दिया उन्हें
सच उनका
तो वे एक साथ सूरज को
देने लगे गालियाँ
उनका ख़्याल है
कि इस तरह मिलकर वे
छिपा सकते हैं सूरज को
हथेलियों की ओट में
मुझे फैंक सकते हैं
मुझसे अलग काटकर
अपने कुंठित
जंग लगे हथियारों से
क्योंकि वे
एक लम्बी रस्सी से
खूँटे पर बँधे हुये हैं
मेममे की तरह