बहाव था जो नदी का वह दिल लुभा भी गया।
भँवर में थी फँसी कश्ती उसे डुबा भी गया॥
न रोक पाया उसे कोई कभी ताक़त से
नज़र मिला भी गया और दिल चुरा भी गया॥
हमारे दिल को वह समझा किया खिलौना ही
मगर वह प्यार के कुछ गीत गुनगुना भी गया॥
न एक बार भी उससे वफ़ा निभायी गयी
सितम है ये कि हमें बेवफ़ा बता भी गया॥
तमाम ज़िन्दगी क़िस्मत में इंतज़ार रहा
गया वह छोड़ के तन्हा हमें बना भी गया॥
मिटा गया वह सभी नक्श अपनी यादों के
रुके न अश्क़ हमें गोकि वह हँसा भी गया॥
वो तीरगी का मिटाने को खौफ़ इस दिल से
हमारे दिल में शमा इश्क़ की जला भी गया॥