Last modified on 19 मई 2019, at 04:34

बहिनें आँखें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

 161
बोझिल मन
 खोजते तुमको ये
धरा -गगन
 162
कली ये खिली
 हल्की प्रेम-फुहार
 जब थी मिली ।
 163
धड़कन हो
 मन की शीतलता ,
 व चन्दन हो ।
 164
अँधेरी खाई
पार हम करेंगे
प्रेम भरेंगे ।
165
तुम हो चन्दा
 मधुर चाँदनी हो
मेरी रागिनी हो ।
166
रिश्तों से परे
सोता प्रेम-मधु का
सदा ही झरे ।
167
 तपती धरा
दहकता गगन
आकुल मन
168
पुरवा हवा
बन शीतल किया
मेरा जीवन।
169
देगे प्रभु जो
वरदान हमको
माँगेंगे तुम्हें ।
17 0
घिरा था तम
यहाँ से वहाँ तक
भटके हम ।
171
तुम आ गए
राह में दीया बन,
हमें भा गए ।
172
बहिने आँखें
कब भारी लगती
पाखी को पाँखें ।
173
समान मन
झेलेंगे सब गम
हम ना कम।
174
आँख जो खुली
विहँसी आँगन में
धुली चाँदनी ।
175
नैन -कोर से
जब मुझे निहारा
फैला उजास
176
किलोंले करे
दीप -शिखा आँगन
उजाला भरे ।
177
नदिया भरे
धरा से नभ तक
उजाला बहे ।
178
अजाना पथ
बढ़े चलो दीप ले
अपना रथ ।
179
 हर दौर में
 तुम्हारी मुश्किल में
 रहें दिल में
180
सदा पहने
उदासी के गहने
उतारो इन्हें