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बहुत-सी बातें / विष्णु नागर

बहुत-सी बातें
हम मानकर चलते हैं
जैसे जहाँ उजाला होता है
वहाँ अँधेरा नहीं होता
इसलिए हम देखते नहीं
कि दर‍असल होता क्या है
हम सोचते नहीं
कि इतने उजाले में आख़िर
इतना अँधेरा क्यों रहता है
कि हम जो मानकर चलते हैं
वही-वही आँखों से दीखता क्यों है ?
बार-बार