Last modified on 1 नवम्बर 2019, at 19:49

बहुत कठिन है / बीना रानी गुप्ता

बहुत कठिन है
रोते हुए बच्चे को छोड़कर
काम पर जाना
बेहतर भविष्य के लिए
रख सीने पर पत्थर
घर की दहलीज लाँघ जाना
पीछे दौड़ते वे नन्हे कदम
कोंपल से कोमल हाथ
जो मुझे पकड़ लेना
जकड़ लेना चाहते हैं
उनसे नजरें बचाकर
चले जाना बहुत कठिन है..

लाऊँगी चाकलेट टाफी
जल्दी घर आऊँगी
खेलूँगी छुपमछुप्पी का खेल
आश्वासन की लकड़ी थमाना
बहुत कठिन है..

‘मुझे नहीं चाहिए ये सब’
उसकी भोली सूरत पर
लिखा एक-एक शब्द
पढ़ लेना
मिटाकर चले जाना
बहुत कठिन है..

आया के हाथों में सौंपी
मूल्यवान धरोहर
पता नहीं कैसे रखती होगी?
मन में उठते असंख्य सवाल
घड़ी की सूईंयों को देखती हूँ तेजी से बढ़ते हुए
देर हो रही आफिस को
सवालों के उत्तरों से
मुँह फेर लेना कठिन है..

आफिस में फाइलों से घिरी
लैपटाप पर चलाती
यंत्रवत उँगलियाँ
लंचटाइम में खोला टिफिन
कौर मुँह में डाला
अनायास उभर आयी
बच्चे की छवि
ममत्व की कील
उर में फँसी
टीस मिटाने की खातिर
सहकर्मियों के बीच हँसी
अरे! पांच बज गये
शीघ्रता से निबटा रही
अपना काम
करती होंगी वो मासूम आँखें मेरा इंतजार
सच में
आफिस और माँ के बीच
संतुलन बनाना
बहुत कठिन है।