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बहुत मज़ा / दिविक रमेश

आओ बूंदों
आकर मेरी क्यारी में हल चलाओ
बहुत मज़ा आएगा।

बहुत मज़ा आएगा
जब छूते हुए फसलों को
निकल जाएगी हवा
इधर से उधर।

और फसलें
बिलकुल हम बच्चों सी
खिलखिलाकर
लोटपोट हो जाएंगी।