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बहुत सी बातें / संध्या रिआज़

बहुत पहले बहुत सी बातें
छूती थीं दिल रूलाती थीं आंखें

मोहल्ले के उस छोर पर पीपल के नीचे
अक्सर बैठती उस बुढ़िया का निधन
मोहल्ले में सनसनी फैलाता
महीनों टिकी दोपहरी की गर्म हवा सा
घरों के अन्दर बाहर घूमता रहता था
छूता था दिल रुलाता था आंखें

दादी की लंबी कहानी की यादें
उड़ते घोड़ों और रोते राजा की बातें
अब भी उन्हें सपने में वापस बुलाती हैं
हाय! उनकी पोपली बोलों की चाषनी ललचाती है
पढ़ाई के नाम पर एक काली पाती और गोरी माटी
दुनियां के गणित भाषा और भूगोल बताती है
ष्षाम होते ही चिड़ियों का घेरा सा
बच्चों का डेरा सा
देर रात हो हो और हल्ला मचाता
दादा और दादी की मीठी डांट खाता
अम्मा की गोद में छिप के सो जाता
पर सुबह की भोर के संग आंख जो खुलती
पाया हुआ सब कुछ ओझल हो जाता
और रात का सपना बन आंखों में खो जाता
लेकिन फिर भी दूर जाके भी दूर न जाता
सच है बहुत पहले बहुत सी बातें
छूती थीं दिल रुलाती थीं आंखें