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बहू / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

 
बहू आई घर में
बेटा पगला गया
माँ-बाप से तोड़ा नाता
घर से निकल गया
माँ-बाप
जाते हुए बेटे को देख रहे
कि यह हमारा सपना था
हकीकत थी
या क्या था
कैसी बहू
कैसा बेटा
जो ना बन सका
बुढ़ापे की लाठी
माँ-बाप पलट रहे हैं
पुरानी एलबम
बेटे की यादांे को
देखते सींचते
बरबस रोते
माँ-बाप
यह किस्सा केवल इनका नहीं
यह हर उन दंपति का है
जो
मोह-माया में रमे हैं
और जो संबंधों से मुक्त हैं
वे कितने खुश हैं
जरा मिलो तो
उनसे...