बह नहीं रहे होंगे
रेवा के किनारे-किनारे
उन दिनों के
हमारे शब्द
दीपों की तरह
पड़े तो होंगे मगर
पहुँच कर वे
अरब-सागर के किनारे पर
कंकरों और शंखो और
सीपों की तरह!
बह नहीं रहे होंगे
रेवा के किनारे-किनारे
उन दिनों के
हमारे शब्द
दीपों की तरह
पड़े तो होंगे मगर
पहुँच कर वे
अरब-सागर के किनारे पर
कंकरों और शंखो और
सीपों की तरह!