1
विलुप्तप्राय!
लोग मन के सच्चे
घरौंदे कच्चे।
2
सगे का स्वार्थ!
सर्वत्र कुरुक्षेत्र
देख लो पार्थ!!
3
प्रेम का क्षय!
रिश्तों का परिचय
अब यही है।
4
करें दमन
कुटुम्बी दुर्योधन
कहाँ मोहन?
5
प्रेम रिश्तों से
हो तितर- बितर
गया किधर?
6
हवेली धाँसू
बँटवारे के कौन
बाँचता आँसू!
7
बिछी बिसात!
रिश्तों की करामात
बड़ी निराली।
8
आँसू से गीला
रिश्ता- मिट्टी का टीला
भरभराया!
9
मन में खोट
मौका पाते ही चोट
दे गए रिश्ते!
10
लोग लगाते
धर कपटी भेष
रिश्तों की रेस!
11
समर्पित थे
जिन्हें प्राण औ मन
वे ही दुश्मन!
12
बुरे सपने-
आएँ, डराएँ जैसे
मेरे अपने!
13
स्वजन छली!
देखा अब न जाता
दया विधाता!!
14
मेरा ही सगा
मुझे मोह से छले
दुश्मन भले!!
15
देव न दूजा!
कलियुग का धर्म
वित्त की पूजा।
16
घर हो गया
अब तो कुरुक्षेत्र
केशव दया!
17
देख लो पिता!
तुम्हारे जाते जली
रिश्तों की चिता।
18
घर छानती!
बेटी, पिता की पीर
अर्थी जानती।