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बाँट लेना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

बाँट लेना
जो बचे
पन्ने पुराने
कुछ टुकड़े
खेत के थे
बाँट लिये
वे सभी तो
घर बाँटा
द्वार बाँटा
प्यार का संसार बाँटा
मेज़-कुर्सी
रैक बाँटे
बच गया अभिशप्त मन था
कौन बाँटे, क्यों बाँटे
साँस अब तो
कुछ बचे हैं
आज वे भी बाँट लेना
बाँटना न भूल करके
घाव मेरे , चोट मेरी
खण्डित स्वप्न
भ्रमित आशएँ
क्या करोगे
ठींकरा सब
कुछ नहीं है मोल इसका।