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बाँसुरी / आनन्द किशोर

महफ़िल में जब मिली हैं निगाहों की बाँसुरी
थिरकी है अपने आप ही साँसों की बाँसुरी

मिलकर गले से रोये थे मुद्दत के बाद जब
आती है याद आज भी बाँहों की बाँसुरी

ये और बात कोई निभाया नहीं गया
बजती रही है रोज़ ही वादों की बाँसुरी

चैनो सुकून हिज्र में मिलता नहीं हमें
नींदों को दूर ले गई आहों की बाँसुरी

तेरी कमी खली है बहुत ज़िन्दगी में तब
जब जब सुनी है चाँद की, तारों की बाँसुरी

लाचार बोलता है या बीमार कुछ कहे
लगती हमें अजीब कराहों की बाँसुरी

महवे ख़याल आपके 'आनन्द' हो गये
बजने लगी है आप की यादों की बाँसुरी