जिस छिद्र में फूँक भरने से
मेरी बाँसुरी बजती है,
तुमने उसी में फूँक भरी है ।
उस फूँक से जो स्वर निकलेगा,
उससे सारा जंगल हिल उठेगा ।
पक्षी बोल उठेंगे,
हवा चल पड़ेगी,
फूल खिल उठेगा ।
रचनाकाल : 7. 3. 1976
जिस छिद्र में फूँक भरने से
मेरी बाँसुरी बजती है,
तुमने उसी में फूँक भरी है ।
उस फूँक से जो स्वर निकलेगा,
उससे सारा जंगल हिल उठेगा ।
पक्षी बोल उठेंगे,
हवा चल पड़ेगी,
फूल खिल उठेगा ।
रचनाकाल : 7. 3. 1976