बाँस के वन
बहुत ही सघन।
खड़े हैं कैसे
वो सीधे,ऊँचे तन।
इनमें भरा
शिष्टाचार का रंग।
बहुत बड़े
अनुशासित हैं वो
पिए हों मानों
भाईचारे की भंग।
आतुर हुए
अब छूने गगन
बरबस ही
मोह लेते,ये भोले
हर मानव मन।
बाँस के वन
बहुत ही सघन।
खड़े हैं कैसे
वो सीधे,ऊँचे तन।
इनमें भरा
शिष्टाचार का रंग।
बहुत बड़े
अनुशासित हैं वो
पिए हों मानों
भाईचारे की भंग।
आतुर हुए
अब छूने गगन
बरबस ही
मोह लेते,ये भोले
हर मानव मन।