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बाउल / शंख घोष / सुलोचना वर्मा

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कहा था तुम्हें लेकर जाऊँगा दूर के दूसरे देश में
सोचता हूँ वह बात
दौड़ती रहती है दूर-दूर तक जीवन की वह सातों माया
सोचता हूँ वह बात
तकती रहती है पृथ्वी, तुमसे हार मानकर वह
बचेगी कैसे !

जहाँ भी जाओ अतृप्ति और तृप्ति दोनों चलती है जोड़े में
बाहर भी, अन्दर भी.
उदासीन नहीं कुछ से — समझ सकता हूँ तुम्हारे सीने में
है कुछ और,
यंत्रणा खोलती है हृदय को अपनी हर गिरह में, उस खुलने का
है अर्थ कुछ और।
 
नींद में देखता हूँ प्रकाश के पूर्ण-कुसुम को नीलांशुक में
नहीं बाँध सकता है ये
जगते ही देखता हूँ कितनी विचित्र बात है, एक भी खरोंच नहीं लगी
उसके प्रेम की देह पर
कहा था तुम्हें मैं फैला दूँगा दूर हवा में
सोचता हूँ वह बात
तुम्हारे सीने के अन्धकार में बजा है सुख मदमत्त हाथों से
सोचता हूँ वह बात।

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
                বাউল

বলেছিলাম তোমায় নিয়ে যাব অন্য দূরের দেশে
সেই কথাটা ভাবি,
জীবনের ওই সাতটা মায়া দূরে দূরে দৌড়ে বেড়ায়
সেই কথাটা ভাবি,
তাকিয়ে থাকে পৃথিবীটা, তোমার কাছে হার মেনে সে
বাঁচবে কেমন ক'রে !
যেখানে যাও অতৃপ্তি আর তৃপ্তি দুটো জোড়ায় জোড়ায়
সদরে - অন্দরে
উদাসিনী নও কিছুতে --- বুঝতে পারি তোমার বুকে
অন্য কিছু আছে,
যন্ত্রণা তার পাকে পাকে হৃদয় খোলে, সে খোলাটার
অন্য মানে আছে।
ঘুমের মাধ্যে দেখি আলোর ভরা-কুসুম নিলাংশুকে
বাঁধতে পারে না এ :
উঠেই দেখি কী বিচিত্র, একটি আঁচড় লাগে নি তার
ভালোবাসার গায়ে !
বলেছিলাম তোমায় আমি ছড়িয়ে দেব দূর হাওয়াতে
সেই কথাটা ভাবি
তোমার বুকের অন্ধকারে সুখ বেজেছে মদির হাতে
সেই কথাটা ভাবি ।।

('दिनगुलि रातगुलि' नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - बाउल)