बाखबर हम हैं मगर अखबार नहीं हैं
बाकलम खुद हैं मगर मुख्तार नहीं हैं
क्या कहा हमने भला इक शेर कह डाला अगर
कट गए वो और हम तलवार नहीं हैं
आप ही तो साथ थे अब आपको हम क्या कहें
जानते हैं रास्ते बटमार नहीं हैं
डूबिएगा शौक से हम तो डुबाने से रहे
हम नदी की धार हैं, मझधार नहीं हैं
आप चीज़ें चाहते हैं आपकी औकात है
हम कहीं तक शामिले-बाज़ार नहीं हैं
आज तक सूरज हमारी देहरी उतरा नहीं
चाहतों में हैं मगर स्वीकार नहीं हैं