बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बागन बागन डोलें राजा बाबुल
सो पकड़ें घुड़ल की बाग हो रम्मा।
हँस-हँस पूछें उनसे मालिन की बिटिया
सो कैसें बदन मलीन हो रम्मा।
कै तुम बाबुल मोरे दामन हीन।
सोकै तुम कुल के हीन हो रम्मा।
न हम मोरी बेटी दामन हीन
सो न हम कुल के हीन हो रम्मा।
हमरे घर इक कन्या कुँवारी
सो ऐ ही से बदन मलीन हो रम्मा।
हाथ में ले लौ बाबुल जल भरी लुटिया
बगल में कुश की डार हो रम्मा।
गोद में ले लो बाबुल कन्या कुँवारी।
सो साजन मिलन ऐसे होय हो रम्मा।