बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
बागन भये बसन्त अबईयाँ,
न जा विदेसै सँईयाँ।
पीरी लता छता भई पीरी,
पीरी लगत कलईयाँ।
सूनी सेज नींद ना आवै,
विरहन गिनें तरँइँयाँ।
तलफत रहत रेंन दिन सजनी
का है राँम करइँयाँ?
ईसुर कऐं सजा दो इनखाँ,
परों तुमाई पइँयाँ