रअद<ref>बादल</ref> हूँ, बर्क़<ref>बिजली</ref> हूँ, बेचैन हूँ, पारा हूँ मैं
ख़ुदपरस्तार<ref>उपासक</ref>, ख़ुदआगाह, ख़ुदआरा<ref>स्वयं सजाना</ref> हूँ मैं ।
गरदने ज़ुल्म कटे जिससे वो आरा हूँ मैं
खिरमन-ए-जौर<ref>जन्म का घर</ref> जला दे वो शरारा<ref>चिंगारी</ref> हूँ मै ।
मेरी अरियाद पर अहले दवल<ref>दौलत वाले</ref> अंगुश्तबगोश<ref>कान बंद कर लेना</ref>
ला तबर<ref>कुल्हाड़ी जैसा हथियार</ref>, ख़ून के दरिया में नहाने दे मुझे ।
सरे पुर नुख़वते<ref>घमंडी सर</ref> अरबाबे जमाँ<ref>हाकिम</ref> तोड़ूँगा
शोरे नाला<ref>गम की प्रार्थना</ref> से दर-ए अर्ज़ो समाँ<ref>ज़मीन और आकाश</ref> तोड़ूँगा ।
ज़ुल्म परवर<ref>ज़ुल्म का पालन करने वाला</ref>, रविश-ए अहले जहाँ<ref>संसार के लोगों का चलन</ref> तोड़ूँगा
इशरत आबाद<ref>भोग-विलास की दुनिया</ref> अमारत<ref>अमीरी</ref> का मकाँ तोड़ूँगा ।
तोड़ डालूँगा मैं ज़ंजीरे असीरान-ए-क़फ़स<ref>जेल के क़ैदियों की ज़ंजीरें</ref>
दहर को पन्ज-ए-उसरत<ref>ज़माने को ग़रीबी के पंजे से</ref> से छुड़ाने दे मुझे ।
बर्क़ बनकर बुत-ए-माज़ी को गिराने दे मुझे
रस्मे कुहना को तहे ख़ाक मिलाने दे मुझे ।
तफरक़े<ref>भेदभाव</ref> मज़हबो-मिल्लत<ref>धर्म</ref> के मिटाने दे मुझे
ख़्वाबे फ़र्दा<ref>आने वाले कल के सपने</ref> को बस अब हाल बनाने दे मुझे ।
आग हूँ, आग हूँ, हाँ एक दहकती हुई आग
आग हूँ, आग बस, अब आग लगाने दे मुझे ।