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बाज़ की अन्तिम उड़ान / चंद्रभूषण

तितलियाँ उड़ रही थीं ।

पूरी रात चली आँधी और असमय बारिश से ठंडी पड़ी ज़मीन पर
हल्की हवा में झूमती घासें अपनी धुन में मगन थीं ।

उनसे सिर्फ़ दो फ़ुट ऊपर पीली सफ़ेद तितलियाँ
हवा के साथ ऊपर-नीचे होते भुओं से
खेलती हुई नाचती हुई उड़ रही थीं ।

ऊपर हाई टेंशन तारों की सनसनाहट थी
लेकिन माहौल में कुछ सनसनी इसके अलावा भी थी ।
पास के फुटपाथ पर एक बाज़ पड़ा था ।

सबसे पहले कौओं को ख़बर लगी ।
उन्होंने उसकी शक़्ल पहचानी या शायद गंध से ही ताड़ गए ।
बात की बात में पूरा इलाका जान गया कि कहीं कुछ गड़बड़ है ।

बाज़ को ऊपर जारी हलचलों का अंदाज़ा था
लेकिन उसके लिए यह कोई नई बात नहीं थी ।
हलचलें हमेशा उसके साथ चलती थीं
सिर्फ़ उसका ज़मीन पर होना ही वहाँ एक नई बात थी ।

थोड़ी देर में कुछ इंसान उधर से गुज़रे
फुटपाथ पर लत्ते के ढेर-सी पड़ी भूरी-सलेटी चीज़ पर उनका ध्यान गया ।
ओह, यह तो चिड़िया है, शायद कोई चील
फिर वे उसकी चोंच पर अटक गए कि यह तो कुछ और ही है ।

बाज ने उन्हें इतने क़रीब पाकर सिर उठाया ।
अपनी खूँखार नज़रों से उन्हें घूरकर देखा
और झुक गया यह सोचकर कि इससे ज़्यादा अब उससे नहीं हो पाएगा ।

पिछली रात का अंधड़ बहुत खतरनाक था
इंसानों ने बात की- यह बाज़ शायद उसी का मारा है ।

एक ने कहा, यह बड़े शिकार मारने वाली ऊँचे पहाड़ों की चिड़िया है
गौरैया पकड़ने वाला कोई छोटा-मोटा बाज़ नहीं,
जो इस इलाके में आए दिन दिख जाते हैं ।

दूसरे ने कहा, बड़ी चिड़ियों पर तो वैसे भी कजा मंडरा रही है
कहीं ऐसा तो नहीं कि यह अपनी नस्ल का अकेला जीव हो ।
तीसरा बोला, यहाँ तो थोड़ी ही देर में कौए और कुत्ते इसे चीथ डालेंगे ।
फिर वे वापस लौटे और बाज़ को उड़ाने की कोशिश करने लगे ।

घायल बाज़ को लगा कि इतनी दुर्गत एक जनम के लिए काफ़ी है ।
हिम्मत करके उसने एक-दो डग भरे
फिर हुमक कर उड़ा
हवा के साथ भुओं और तितलियों को भी अपने पंख से पछोरता हुआ ।

ज़मीन से सिर्फ दो फुट ऊपर अजीब लड़खड़ाहटों भरी
कोई दो सौ गज लंबी यह उसकी अंतिम उड़ान थी ।

इतनी ही दूर खड़ी बेतरतीब झाड़ियाँ उसकी बाट जोह रही थीं ।
अजनबी इलाके में हर ओर से घिरा अकेला पक्षी
किसी सनसनाते पत्थर की तरह झाड़ियों में गिरा
और अपनी कहानी के बेहतर अंत का इंतज़ार करने लगा ।