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बाजीगर / श्याम महर्षि

जुगां-जुगां सूं
थारी बंसरी
अर डमरू री आवाज
सुणतो रैयो
म्हारो गांव,

थूं अर थारो
जम्बूरो दिखांवता रैया हो
म्हानै नित-नूवां करतब
अर थारै आं
करतबां ने देखता रैया हां म्है।

थारै परवार री
रोटी रोजी रै जुगाड़ री गारण्टी
करता आयां हां म्हे,
गांव रा वासिंदा
पण बाजीगर
अर जम्बूरै रो पेट
अबै गांव सूं मिलती
रोटी सूं नीं भरीजै

बो बेमन सूं
नीं चांवता थकां ई
हुयग्यो है व्हीर
म्हारै गांव सूं।

अबै बाजीगर
अर उण रो परवार
सै‘र री कोठ्यां आगै
तो कदैई
गरीबां री झुग्गी-झोपड़यां आगै
करे करतब
अर हिचकै
पापी पेट ने भरणनै,

बाजीगर रै मुंह सूं निकलता गोळा
अर जम्बुरै री
टोपी सूं उड़ती
कबूतरां री जोड़ी सूं
राजी नीं हुवै अठै रा
तमाषबीन लोग
बांरा सबळा हाथ
कीं देवणै खातर
नीं जावै गुंजै कानी

हत्या, चोरी, डाकेजनी
बलातकार अर मारपीट रा
चितराम हमेसां
टी.वी. माथै देखणिया सै‘र रा लोग
मन सूं दयालू नीं हुवै,

बाजीगर रै चादर हेठै
जम्बूरे रै पेट मांय
खोबतै छुरै सूं
निकलते खून रो दिठाव
सै‘र रै लोगों रो मन
नीं पसीजै,

कच्ची बस्ती रै
झूंपड़ै मांय एक दिन
बाजीगरी रा
साज-बाज अर
टोकरी छोड़‘र
सदा खातर हुयग्या व्हीर
बाजीगर अर उणरो लाडेसर
जम्बूरो।