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बाजे अनहद तूर / मधुरिमा सिंह

बाजे अनहद तूर
जोगी,
बाजे अनहद तूर
अंतर्मन की वीणा सुन ले बाजे अनहद तूर
अपने पास भी बैठ, घडी भर, काहे ख़ुद से दूर
जनम लिया है, मरना भी है, किसके नशे में चूर
पोर-पोर में पिरा रहा है, मीठा - सा संतूर
प्रेम पंथ के साधक कबिरा, तुलसी मीरा सूर
आखर आखर करे मजूरी, साहिब सुनो हुज़ूर
पत्थर महंगा हो या सस्ता, दिल तो चकनाचूर
जितना कोई मिटाना चाहे, हम उतने मशहूर
शहंशाह दिल वालों के हम, शब्दों के मज़दूर
सारी उम्र जगी मधु सासे, सो ले अब भरपूर