तुम नदी के
उफनते जल की तरह
आगे ही आगे
दौड़ते चले जा रहे हो
और मैं--
पल-प्रतिपल
किनारे की तरह
बाँहें फैलाये
तुम्हारे आने की
बाट जोह रही हूँ!
तुम नदी के
उफनते जल की तरह
आगे ही आगे
दौड़ते चले जा रहे हो
और मैं--
पल-प्रतिपल
किनारे की तरह
बाँहें फैलाये
तुम्हारे आने की
बाट जोह रही हूँ!