बातों में तो आगे पीछे भारत है
फ़िक्र अगरचे अपनी अपनी बाबत है
सोच महाजन , नीयत ठेकेदारों की
राहबरों में राहज़नों की फ़ितरत है
व्यवसायिक दृष्टिकोणों के अंतर्गत
चुप रहना कितनी व्यवहारिक आदत है
रक्खें अब महफ़ूज़ कहाँ विश्वासों को
घर के अन्दर भी तो फ़क़त सियासत है
वक़्त शहादत चीख़-चीख़ कर देता है
जीवन केवल एक निरंतर दहशत है