Last modified on 15 फ़रवरी 2025, at 23:35

बात की खातिर / राकेश कुमार

बात की खातिर समय को नष्ट करना छोड़ दें।
बात तो है बुलबुले-सी,हम पकड़ना छोड़ दें।

दूरियाँ हैं जब तलक फिर बात की है बात क्या,
बात बन जाए अगर,इससे पलटना छोड़ दें।

बात ही दे घाव जाती,और मरहम दे लगा,
जो बने नासूर उसको, याद रखना छोड़ दें।

बात की खातिर जहाँ में,जान की बाजी लगी,
जानकर अनजान बनना औ फिसलना छोड़ दें।

याद दुनिया में हमारी बात ही रह जायगी,
बात है मुश्किल इसे आसान कहना छोड़ दें।