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बात दिल खोल के आपस में अगर हो जाती / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

बात दिल खोल के आपस में अगर हो जाती
हम अंधेरों से उबर जाते सहर हो जाती

कौन हैं गैर अगर इतना समझ लेते तुम
हम तुम्हारे हैं तुम्हें ये भी ख़बर हो जाती

सुल्ह की फ़िर निकल आती कोई सूरत भी ज़रूर
काश इस सम्त कभी उन की नज़र हो जाती

फ़िर न करते वो कभी मुझ को दिवानों में शुमार
दिल हालत जो इधर है वो उधर हो जाती

राहतें मैं भी मंगा लेता मियाँ दिल्ली से
किसी मंत्री से मेरी बात अगर हो जाती

प्यार के फ़ूल नहीं होते जो गुलशन में 'यकीन'
ज़िंदगी जैसे कोई सूखा शजर हो जाती